Search This Blog

Wednesday, 7 June 2017

नैंसी झा के लिए

तेज़ाब!
तेज़ाब देखा है क्या किसी ने यहाँ?
उसे कभी स्पर्श किया है क्या?
चलो स्पर्श छोड़ो उन मादक तत्वों के साथ कभी दो घूंट पिया है या नहीं?
अगर नहीं पिया तो समय है। अब भी मुँह लगा कर देखो उसे।
मुख-मण्डल पर ऐसे भाव क्यों छा रहे तुम्हारे?
कुछ गलत कह गया क्या?
तेज़ाब से बेहतर तो कुछ है ही नहीं इस जहाँ में।
यकीन नहीं होता तो मधुबनी की लाडली से ही पूछ लो।
उद्गार ऐसे प्रकट करेगी कि निःशब्द रह जाओगे। आखिर इस दुःख दायी कलियुग में कुछ तो है तो सभी कष्टों का एकाक निवारण करता है।
मादकता ऐसी की महादेव का भांग भी स्वयं को तुच्छ समझे।
तरलता ऐसी की मदिरा भी ठिठक-सी जाए।
गम्भीर इतना कि एक बूंद भी पूरा जीवन याद आये।
उत्कृष्टता ऐसी की विदेशी भी ठुकरा दी जाए।
ढूंढ़ने में बिल्कुल आसान।
भाइयों दाम में कम और काम में तो बस दम ही दम।
क्या अब भी आपको मज़ाक ही लग रहा है?
अरे भाई! अगर इस दानवीरों को छोड़ दानवों को पूजने वाले युग में कोई किसी अपने के लिए ऐसी चाहत रखता है तो यह खराब तो नहीं ही होगा। जो मेरे शब्द आपको इतना चुभ रहे हैं।
गर मैं गलत हूँ तो बताइए
क्या आवश्यता थी जो उस मनचले आशिक़ ने अपने प्रेम का इज़हार इस भेंट के माध्यम से किया?
क्या कमी रह गयी थी को नव विवाहित वधु का परिणय-सूत्र के पीयूष के बदले इसकी धार से अभिषेक कराया गया?
क्या गलती हो गयी थी कि नौकरी से लौटते वक्त अपने ही मित्रों ने इसका अंजलि भर दान षोडषी के चेहरे को अर्पित किया?
या फिर शायद चाचा और बुआ नें कुछ सोच कर ही तो उस मासूम बच्ची से इसका रसास्वादन कराया?
आप ही का कहा हुआ है ना, "अपने लोग हैं।इनकी बात मानो।"
माना तो इसने। इसने क्या इन सब ने।
फिर तो ये दिव्य उपहार उस अपनेपन की निशानी हैं शायद।
है ना?
नहीं?
आश्चर्य है तब तो।
वैसे आपकी भाव भंगिमा तो गम्भीर नज़र आ रही है अब।
चलिये मैं भी गम्भीर हो लेता हूँ तब।

तेज़ाब की जलन से कहीं ज़्यादा वेदना देती है उस पापी-दुष्कर के समक्ष आपकी चुप्पी तथा अम्लीय-घावों में डूबे उस कुटुम्ब के लिए आपके प्रश्न।
निर्लज्जता की किस पराकाष्ठा पर जाकर रुकेंगे आप?
मेरे शब्दों में परमात्मा की वह मासूम अंश आरोपी देखती है आपको जो महिषासुर जैसे राक्षस की पूजा न होने पर मानवता में विनाश की लहर देखते हैं और वहीं दुर्गा के चरित्र पर तेज़ाब फेंके जाने को ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में सहर्ष स्वीकार करते हैं।
कैसा है आपका यह ज्ञान जो माँ, बहन, बेटी, शिक्षिका; सब को व्यभिचार के एक ही दृष्टिकोण में समेट लेता है और आपको इसकी तनिक भी ग्लानि नहीं होती।
खैर छोड़िये मुझे आपसे वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है।आप नहीं, आपकी परवरिश का यह दोष है।
जिनमें ज़रा भी ग़ैरत बची है वे इस बात को समझें कि तेज़ाब की हर एक बूंद हमें नहीं किन्तु आपको नष्ट कर रही है।
आपके ही भव-सागर के पार जाने वाली नैय्या के ये छिद्र हैं जो ऐसा ज़ख्म दे जाते हैं।
सो, समय रहते सुधार कीजिये।
अन्यथा पुराणों के कल्कि को शायद इन्हीं अभिशापों से मुक्ति का मार्ग आपकी रक्त-सरिता के निर्माण से करना होगा।
तब तक मेरे हर अश्क की खातिर आप सब को नित रो-रो कर जीना होगा।