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Monday 23 March 2020

त्रयी तमाम तारतीं

आज इस अमर-त्रयी को, नमन भी ज़रा-सा कीजिये।
आज इस अजर-त्रयी को, शर्म भी ज़रा-सा कीजिये।
वक़्त के बस मापदण्ड हैं जो गए बदले अभी तक,
आज इस अधर-त्रयी को, गर्म भी ज़रा-सा कीजिये।

आज इस अगर-त्रयी को, गमन भी ज़रा-सा कीजिये।
आज इस अपर-त्रयी को, नर्म भी ज़रा-सा कीजिये।
बंदिशें जो मस्तकों की हैं बन चुकी गाढ़ी हिजाब,
आज इस असर-त्रयी को, कर्म भी ज़रा-सा कीजिये।

आप जग में आज भी मजमा लगाए लीन हैं,
धन्य तीनों प्राण थे जो प्राण में अब लीन हैं।
                                 - सुखदेव।

अमर-त्रयी - तीनों शहीद
अजर-त्रयी - तीसरी तारीख ( बीस के बाद की )
अधर-त्रयी - वेद-first three
अगर-त्रयी - मानव जीवन के तीन संशय 
अपर-त्रयी - मानव जीवन की तीन क्षमता से अधिक आँकी गई पहलुएं
असर-त्रयी - मानव जीवन के तीन छद्म नियंत्रक

4 comments:

  1. अत्यंत गरिष्ठ किन्तु भावुक रचना। शब्द प्रवाह के विराम को इस तरह अब कम लोग ही नियंत्रित कर पाते हैं, आप ऐसा कर पाते हैं तो ये निश्चित ही सतत साधना का परिणाम है। इस कविता की हिन्दी गर कठिन है तो अनूठी भी है, भावों का कहना ही क्या!

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  2. अत्यंत खूबसूरत रचना

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  3. आभार आपका मित्र। मैं चिन्हित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करूँगा।

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  4. इस त्रयी में सब कुछ सोच रहे है
    हर राज यहाँ पर खोल रहे है ।
    इन गूढ़ पदो को जानकर
    सब कैसे कैसे बोल रहे है ॥

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