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Wednesday, 11 March 2020

होलीय रंगों की कुछ छींटें

बीत गयी होली।

फोन पर आशीषों के अंबार लगे,
कम्पनियों के लाभों के व्यापार लगे।
परिवार आज फिर एक संग नहीं हो पाया,
जब रोटी-ड्यूटी की डटकर हुँकार लगे।

भला हो गाँव से दूर,
इस शहरी वीराने में रहते,
सगे-सम्बन्धियों का।
बुआ के हाथ की रोटी,
फूफाजी की विरासत,
और बच्चों की निश्छलता,
इन्हें तो याद रखना होगा।

यही दर्शन घूम रहा था आज भी -

रोटी का निवाला अवश्य ही,
भारी है हमारा।
इतने पर्वों की उदासियाँ जो समेटे बैठा है।

पापाजी का पार्विक सान्निध्य,
माँ का वास्तविक स्पर्श,
बाची से गुफ्तगू,
सन्तन कला विज्ञ,
माई का कुशल-क्षेम,
चाची की रसोई,
चाचाजी का गर्व,
सत्या-सिया की नक्को-सन्तति - 
इन सभी के ऊपर स्थान पाए,
श्री श्री विलायती कीकड़ जी महाराज।

अबकी अपनी असली,
यही रही होली।

होली की असीम शुभकामनाएं।

PC : Vikas Kumar.


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