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Tuesday 22 January 2019

बेटा आये तो अच्छा है।

एक ठिठुरते दिन की बात है। मैं हमेशा की तरह अपनी अपनी नियत गश्त पर निकली थी। जिस प्रकार सविता सदैव संध्या का सान्निध्य पाते ही समेटने लगता है अपने सभी अंशु रूपी सवालों को। उसी प्रकार मैं भी ढ़लती शाम के साथ सर सुंदरलाल अस्पताल के प्रसूति विभाग के मरीजों की स्थिति समझती बढ़ रही थी। काफ़ी व्यस्तता भरा दिन था वह। शायद इसीलिए थकान के मद में चूर मेरे शरीर को सामने के सभी बिस्तर, मेरे जोधपुर कॉलोनी वाले मकान की मंज़िल से दूरी बढ़ाते अवरोध ही जान पड़ रहे थे। वही मंज़िल जहाँ मेरा रवि अपने स्वादिष्ट परांठों के साथ मेरी राह देख रहा था। कल तो लौटा था वो अपनी वर्दीवाली ड्यूटी से। उस क्षण अपने फर्ज़ की अचकन को मैंने मन-ही-मन टाँग दिया तथा कुछ फुर्ती से, कुछ लापरवाही में उन सभी निपटाना प्रारम्भ किया। खुद पर हँसी भी आ रही थी मुझे क्योंकि अपना बर्तन माँजना याद आ रहा था अभी।

किसी तरह दूसरा कक्ष पार करके जब मैं आगे बढ़ी तब मुझे वो कल वाला बच्चा दिखा। बड़ा प्यारा लग लग रहा था कल वो। उसकी माँ भर्ती है यहाँ। दोनों पति-पत्नी ने शुरुआत में कभी किसी रिश्तेदार को दिखाया था मुझे। बहुत पहले। शायद जब मैं सीख रही थी। मुझे तो याद भी नहीं। खैर, मैंने यूँ ही उसे छेड़-सा दिया। पर इस बार उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। न गुर्राया, न माँ से शिकायत की धमकी दी। न ही अपने चाचा के कुर्ते को खींचने का बीड़ा उठाया। चुपचाप हाथ जोड़कर श्रीराम का नाम लेकर कुछ बुदबुदाता रहा। मुझे जिज्ञासा हुई। मैंने भी सोचा जो मरीज़ जाँच के वक़्त मेरे व्हाटसअप के इस्तेमाल पर उफ्फ़ तक नहीं करते उन्हें इस प्रभु-छवि के यहाँ थोड़े विराम पर कोई आपत्ति नहीं ही होगी।

सो मैंने झुककर उससे पूछा, " और अर्श, क्या कर रहे हो?"

उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, " डॉक्टर, मैं भगवान को एक बहन भेजने के लिए मना कर रहा हूँ। कल ही मांगा था मैंने।"

बालमन के इस सटीक और भोले जवाब ने गुदगुदा दिया मुझे।
" फिर आज क्यों रोक रहे हो? ऐसा क्या हो गया?",मैंने मुस्कराते हुए पूछ लिया।

इस पर उसने मुझे जो उत्तर दिया। उसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। किसी पुराने घाव को फिर से निचोड़ दिया। ऐसा ज़ख्म जिसका इलाज विश्व के किसी चिकित्सक के पास नहीं था। उस रात मैं घर भी नहीं गयी। रवि और उसके परांठे, उसकी किताबों के संग ही सो गए। मैं अपनी कुर्सी पर ही सन्न बैठी रह गयी।

उसने कहा, ' सुबह मैय्या, पितु से कह रही थी कि," बेटा आये तो अच्छा है। कम-से-कम भटका भी तो लौटकर घर ही आएगा।"'
                        - सुखदेव।

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